जिम्मेदारों को अपने स्वभाव पर लगातार काम करना चाहिए। खासतौर पर कर्णधारों को स्वभाव समुद्र की तरह रखना होगा। जिम्मेदारी समुद्र की तरह गहरी और लहरों की तरह उत्साह भरी रहनी चाहिए। राम राज्य में वर्णन है 'सागर निज मरजादां रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं...।' अर्थात 'समुद्र अपनी मर्यादा में रहते हैं। वे लहरों के द्वारा किनारों पर रत्न डाल देते हैं।' अब हम चुनाव का समुद्री तूफान देख रहे हैं। न तो समझ होगी, न ही जानकारी, लेकिन सभी नेताओं के दावे राम राज्य के होंगे। चुनावी अर्थव्यवस्था के नीचे मजबूर, आहत भारत बहुत कम लोगों को नजर आएगा। राम ने अपने राष्ट्र के अंतिम व्यक्ति को भी आर्थिक और नैतिक रूप से संपन्न किया था। देश में एक बड़ा वर्ग है, जो जीवनभर धन का रूप, सुख और भोग देख ही नहीं पाए। उनके बच्चे भी निर्धन ही आए और गरीब ही चले गए। घोषणाओं के समुद्री शोर को अमीर-गरीब की खाई दिखाई नहीं देती। राम के नाम पर राज्य करने और पाने की चाहत करने वालों को राम राज्य में ईमानदारी से जुड़ना होगा। राम राज्य की स्थापना में पांच लोगों की रुचि और भूमिका थी। इनमें दशरथ, कैकेयी, मंथरा चूक गए, असफल हो गए। भरत और राम ने राम राज्य का सही अर्थ जाना था। हम तय करें, हम इन पांचों में से किसकी भूमिका में रहेंगे।