बर्फ और ब्लैक फारेस्ट के देवदार के वृक्षों से गुजरते हुए 5 दिसम्बर 1807 की एक शाम को एक आठ वर्षीया बालिका पहाड़ों में बसे एक दिहाड़ी कमाने वाले आदमी के घर के सामने लगभग नंगे पांव और आधे-अधूरे कपड़े पहने आई और घुल-मिल गई। न मुझसे, न तुमसे, बल्कि उन बच्चों से जो उस गरीब आदमी के घर के बाहर खेल रहे थे। वह उनके साथ खेलने लगी और फिर न मेरे साथ, न तुम्हारे साथ, बल्कि उनके साथ, वह उनके कमरे में चली गयी और फिर वहां से जाने के बारे में कभी नहीं सोचा। बिल्कुल एक नन्ही भेड़ की तरह, जो अपने झुण्ड से बिछुड़ जाने पर इधर-उधर भटकती है और जब वह अपनों के पास आ जाती है तो उसे कोई चिंता नहीं रहती। दिहाड़ी कमाने वाले ने पूछा कि वह कहां से आयी है तो वह बोली कि ऊपर गुटेनबर्ग से। तुम्हारे पिता का क्या नाम है? मेरे कोई पिता नहीं हैं। तुम्हारी मां का क्या नाम है? मेरी कोई मां नहीं है। तुम्हारे कोई सगे-सम्बन्धी हैं। मेरा कोई सगा सम्बन्धी नहीं है। उसने जो कुछ भी पूछा उससे यह पता चला कि वह बालिका भिखारियों द्वारा उठा ली गयी थी और यह कि वह कई वर्षों भिखारियों और उठाईगीरों के साथ रही है और उसे आखिरी बार संत पीटर में छोड़ दिया गया था और वह अकेली ही संत मेर्गेन आई थी और अब वह वहां थी जब वह दिहाड़ी कमाने वाला आदमी अपने घर वालों के साथ खाने बैठा तो मेज पर उस अपरिचित बालिका को भी साथ बैठा लिया। जब सोने का समय हुआ तो वह भट्टी की बेंच पर लेट गयी और सो भी गयी। उसी प्रकार अगले दिन और फिर तीसरे दिन भी। चूंकि उस आदमी ने सोचा कि मैं इस बेचारी बच्ची को फिर से उसके कष्टमय जीवन में नहीं धकेल सकता और एक और इन्सान को भोजन कराना मेरे लिए कठिन होगा तो तीसरे दिन उसने अपनी पत्नी से कहा कि मैं यह सब पादरी महोदय को भी बताना चाहता हूं। पादरी ने उस गरीब आदमी के नेक विचारों की प्रशंसा की। पारिवारिक मित्र ने भी की, पर पादरी ने कहा कि उस बालिका को तुम्हारे बच्चों के भोजन में से हिस्सा नहीं करना चाहिए वरना उनका निवाला बहुत छोटा हो जायेगा। मैं इस बालिका के लिए माता-पिता की व्यवस्था करता हूं।
सो वह पादरी अपने इलाके के एक धनी व नेक विचारों वाले इन्सान जिसके खुद के कम बच्चे थे, उनके पास गया। पारिवारिक मित्र को बिल्कुल नहीं पता कि उसने उससे कैसे क्या कहा। पादरी ने कहा- ‘पीटर, क्या तुम एक भेंट स्वीकार करोगे'। निर्भर करता है कि वह क्या है। वह आदमी बोला- 'यह सीधे हमारे ईश्वर के यहां से आयी है' अगर यह ईश्वर के यहां से आयी है तब तो किसी प्रकार की कोई गलती की सम्भावना नहीं है। सो पादरी ने वह परित्यक्ता बालिका उस आदमी को सौंप दी और उसके बारे में सब कुछ बताया। उस आदमी ने कहा कि मैं अपनी पत्नी से बात करना चाहता हूं। हालांकि इसमें कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये। उस आदमी और उसकी पत्नी ने उस बालिका को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। अगर यह ठीक से रही तो मैं इसका तब तक लालन- पालन करूंगा जब तक कि यह स्वयं अपनी रोटी कमाने लायक न हो जाय। अगर यह ठीक से नहीं रही तो भी मैं इसे वसंत ऋतु तक तो अवश्य रखूंगा क्योंकि बच्चे को जाड़ों में यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता। अब उसने चार जाड़े पहले ही निकल लिए हैं और चार गर्मियां भी। बच्ची ने अच्छी तरह व्यव्हार किया, आज्ञाकारी है और कृतज्ञ भी और विद्यालय में मेहनत भी की। सिर्फ खाना-पीना ही नहीं बल्कि ईसाई आचार-विचार का ज्ञान, पितृ सुलभ लाड़-प्यार, मातृ सुलभ देख-भाल भी उस पर होने वाली ईश्वर की वह अनुकम्पा थी जो उस सहृदय दम्पति ने उस पर की। जो भी उस पुत्री को औरों के साथ विद्यालय में देखता है वह यह समझ ही नहीं सकता कि यह कौन है क्योंकि वह इतनी सुघढ़ दिखती है और इतने साफ-सुथरे कपड़े पहनती है। ऐसा ही कुछ उस पारिवारिक मित्र को भी लगता होगा वरना वह उस दिहाड़ी पर काम करने वाले सज्जन आदमी और उदार माता-पिता को नाम से पहचान सकता था कि वे कौन हैं और उनका क्या नाम है पर उसके मुंह तक यह बात कभी नहीं आई।
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