जर्मनी की सबसे बड़ी रेल ऑपरेटर कंपनी डॉयचे बॉन, बीते कई वर्षों से मुश्किलों का सामना कर रही है। तांबे की चोरी ने सिरदर्द और बढ़ा दिया है।
2022 में तांबे की चोरी ने डॉयचे बॉन को 6.6 अरब यूरो का नुकसान पहुंचाया। यह जानकारी जर्मनी के प्रमुख बिजनेस अखबार हांडेल्सब्लाट ने दी है। रिपोर्ट के मुताबिक तांबे की चोरी के कारण 2,644 ट्रेनें देरी से चलीं. यह देरी कुल मिलाकर 700 घंटे की थी।
तांबे की तारें चुराने के लिए अपराधियों ने केबल कवर तबाह कर दिए। इसकी वजह से सप्लाई चेन और लाखों यात्री प्रभावित हुए। डीबी कही जाने वाली कंपनी डॉयचे बॉन की इमेज भी इस लेट लतीफी के कारण खराब हुई।
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तांबा चोरों के कारण सिर्फ जर्मनी की राष्ट्रीय रेल कंपनी ही परेशान नहीं है। चोरों ने निर्माण स्थलों से भी कॉपर के तार और पाइप चुराए। जांच में पता चला है कि चर्चों के ऊंचे टॉप से भी कॉपर प्लेट्स चुराई गईं।
सबसे नाटकीय चोरी अगस्त 2023 में कॉपर निर्माता और रिसाइक्लिंग कंपनी ऑरुबिस के यहां हुई। हैम्बर्ग की इस कंपनी के मुताबिक वह करीब 20 करोड़ यूरो की तांबा चोरी का शिकार बनी। यूरोप की सबसे बड़ी कॉपर प्रोड्यूसर कंपनी ऑरुबिस ने चोरी के बाद दावा किया कि उसे आपराधिक गैंग पर शक है। कंपनी के रिकॉर्ड्स में भी बहुत सारी खामियां मिलीं।
तांबा अहम कच्चा माल
तांबा बहुत से उद्योगों के लिए अहम कच्चा माल है। बिजली का बढ़िया सुचालक होने के कारण कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इसका इस्तेमाल होता है। स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बढ़ती दुनिया में तांबा एक अहम कच्चा माल है। अर्थ रिसोर्स इनवेस्टमेंट (ईआरआई) कंसल्टेंसी के सीईओ योआखिम बेर्लेनबाख कहते हैं, "तांबे की मांग भविष्य में बहुत ज्यादा बढ़ेगी।"
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डीडब्ल्यू से बातचीत में बेर्लेनबाख ने कहा, "एक पवनचक्की के बारे में सोचिए, जो चुंबकीय क्षेत्र में तांबे की कॉइल घुमाने से बिजली बनाती है।"
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तांबे की कीमत लगातार बढ़ रही है। बेर्लेनबाख कहते हैं, "हमारे पास कार्बनमुक्त होने के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस कच्चे माल की पर्याप्त मात्रा है ही नहीं। ऊर्जा के स्रोतों में बदलाव की वकालत करने वाले लोग अक्सर इसे नजरअंदाज कर देते हैं।"
आर्थिक विकास से जुड़े तांबे के दाम
बेर्लेनबाख को लगता है कि भविष्य में चीन और भारत जैसे देश तांबे की मांग को और ऊपर ले जाएंगे। आर्थिक विकास के साथ इन देशों में समृद्धि आएगी और जीवनस्तर बेहतर होगा। वह कहते हैं, "ज्यादा कारें चलाई जाएंगे, ज्यादा एयर कंडीशनिंग सिस्टम लगाए जाएंगे और बेहतर इलेक्ट्रिक वायरिंग वाले ज्यादा घर बनाए जाएंगे।"
ईआरआई के सीईओ के मुताबिक, इंसानों ने अब तक 700 टन तांबा खोद लिया है, "अगले 30 साल में भी हमें इतना ही तांबा और चाहिए।" यह अंदाजा वह अपनी कंपनी की गणनाओं के आधार पर करते हैं।
मांग बढ़ती जा रही है लेकिन तांबे की नई खदानें खोजना मुश्किल हो रहा है। बेर्लेनबारख के मुताबिक तांबे के ज्यादातर भंडार, भूराजनीतिक उथल पुथल झेल रहे देशों, जैसे चिली और डीआर कॉन्गो में हैं। ऐसे देशों में निवेश करने से पहले कंपनियां आर्थिक नफे नुकसान का आकलन करती हैं।
कहां जाता है चोरी हुआ तांबा?
ऑरुबिस कॉपर के अपराधी लंबे समय से छुपे हैं। एसोसिएशन ऑफ जर्मन मेटल ट्रेडर्स एंड रिसाइक्लर्स के राल्फ श्मिट्ज मुताबिक चुराए गए तांबे को यूरोपीय रिसाइक्लिंग बाजार में बेचना आसान नहीं है। श्मिट्ज कहते हैं कि तांबे से जुड़ी हर डील और डिलिवरी रिकॉर्ड की जाती है।
जर्मन अखबार टागेश्पीगल से बात करते हुए उन्होंने कहा, "चोरी हुए माल की जानकारी कारोबारियों को होती है। यह बात हमारे पूर्वी पड़ोसी पोलैंड पर भी लागू होती है, वहां भी इससे मिलता जुलता सिस्टम है।"
श्मिट्ज को शक है कि चुराए गए तांबे को जर्मनी के बाहर बेचने की कोशिश की जाएगी. उसे ऐसी जगह से सप्लाई किया जाएगा जहां गैरकानूनी शिपिंग का मौका मिले। वह कहते हैं, "चुराई गई धातुओं का बड़ा हिस्सा यूरोप में बेचा ही नहीं जाता है। मेरी थ्योरी के मुताबिक ज्यादातर ऐसा धातु, कंटेनरों के जरिए समंदर पार जाता है।"
'तांबे का कोई विकल्प नहीं'
तांबे समेत कई धातुओं के बढ़ते दाम अपराधियों को बेहतर ढंग से संगठित होने और योजना बनाने का मौका दे रहे हैं। ऑरुबिस चोरी की जांच कर रही पुलिस ने छापे में हथियार, गोलियां, दो लाख यूरो से ज्यादा की नगदी और कई कारें बरामद कीं।
ईआरई के सीईओ बेर्लेनबाख के मुताबिक, "तांबे की ऐसी नाटकीय चोरी दक्षिण अफ्रीका से मिलती जुलती है। वहां एक बार मेरे पड़ोस की सभी टेलिफोन लाइनें साफ कर दी गईं। वो अच्छे से संगठित किसी ऐसे गैंग ने किया होगा जिसका संपर्क पेशेवर खरीदारों से भी हो।"
ये सब जानने के बावजूद रेल नेटवर्क और बिजली ग्रिडों को चोरों से कैसे सुरक्षित रखा जाए, बेर्लेनबाख के पास इसका कोई जवाब नहीं है। वह कहते हैं, "दुर्भाग्य से तांबे की तारों का कोई विकल्प नहीं है, यह भौतिक विज्ञान का मामला है।"