जर्मनी में आप्रवासियों और रिफ्यूजियों की बढ़ती संख्या और अनियमित आप्रवासियों को देश से निकालने की धीमी रफ्तार एक बड़ा राजनीतिक मसला बन गई है।
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने डेर श्पीगल पत्रिका से बातचीत में, एक कड़ी शरणार्थ नीति लाने की घोषणा की। इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा, हमें आखिरकार बड़ी संख्या में उन लोगों को डिपोर्ट करना होगा जिनके पास जर्मनी में रहने का अधिकार नहीं है। शॉल्त्स ने कहा कि यह अस्वीकार्य है कि यूरोप में आप्रवासीजर्मनी में आप्रवासियों को निकालने की प्रक्रिया सालों तक लटकी रहती है। चांसलर शॉल्त्स की कही बातों को ठोस रूप देने की दिशा में आगे बढ़ते हुए गृह मंत्री नैंसी फाएजर ने एक बिल पेश किया जिसे कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है।
फाएजर ने बर्लिन में पत्रकारों को बताया कि डिपोर्टेशन की प्रक्रियाको सुधारना, आप्रवासन नीति को कड़ा करने की तरफ उठाए जाने वाले कदमों में से एक है। फाएजर ने कहा, "हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि जिन्हें यहां रहने का अधिकार नहीं है, वह तुरंत देश छोड़ दें। इस तरह हम जर्मनी में रिफ्यूजियों को मिलने वाले सामाजिक सहयोग को मजबूत कर रहे हैं।" गृह मंत्री का तर्क था कि इस तरह के नियम जो निर्वासन की प्रक्रिया को तेज कर सकें, जर्मनी के लिए बेहद जरूरी हैं ताकि वह युद्ध और हिंसा झेल रहे लोगों को मानवीय सहायता पहुंचाने की जिम्मेदारी निभा सके।
डिपोर्टेशन के नए नियम
फाएजर ने जो बिल पेश किया है, उसमें अधिकारियों को ज्यादा ताकत दी गई है, खास कर अपराधियों और मानव तस्करों के मामले में बिल के कुछ मुख्य बिंदु हैंः
- जिन लोगों को डिपोर्टकिया जाना है, अधिकारियों को उन्हें पहले से सूचित करने की जरूरत नहीं रहेगी. जिन परिवारों में छोटे बच्चे हैं, वह इसका अपवाद
होंगे।
-ऐसे मामलों में, जहां एक व्यक्ति किसी साझे घर में रहता है, पुलिस को प्रवेश करने और सभी कमरों की तलाशी की इजाजत होगी।
- अगर कोई व्यक्ति पासपोर्ट नहीं दिखा पाता है, तो अधिकारियों को पहचान की पुष्टि के लिए, उसके निजी मोबाइल फोन या लॉकर की तलाशी का अधिकार
होग।
- डिपोर्ट करने से पहले हिरासत में रखने का वक्त 10 दिन से बढ़ाकर 28 दिन कर दिया जाएगा ताकि अधिकारियों को प्रक्रिया की तैयारी के लिए ज्यादा
समय मिल सके।
- संगठित आपराधिक गुटों के सदस्यों को जर्मनी से निकाला जा सकता है, भले ही उन्होंने कोई अपराध किया हो या नहीं।
जर्मनी में बढ़ते रिफ्यूजी
यूक्रेन युद्ध से जान बचाने की कोशिश में निकले करीब दस लाख से ज्यादा लोगों को जर्मनी ने पनाह दी। उसके अलावा, दूसरे देशों के करीब 244,000 लोगों ने, पिछले साल शरणार्थी बनने के लिए आवेदन किया। इस साल यह संख्या 300,000 पहुंच सकती है। हालांकि मुद्दा यह है कि ऐसे लोग, जिन्हें शरण देने की कोई राजनीतिक वजह नहीं है या रिफ्यूजी के तौर पर भी रखा नहीं जा सकता, उन्हें बाहर नहीं निकाला जा सकता अगर कोई देश उन्हें लेने को तैयार ना हो, या उनका अपना देश युद्धग्रस्त हो या फिर वह किसी ऐसी बीमारी से जूझ रहे हों जिसका उनके देश में इलाज मुमकिन नहीं। हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनका पता लगाना अधिकारियों के भी बस की बात नहीं। करीब 200,000 लोग इसी श्रेणी में आते हैं।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर के अंत तक, जर्मनी में 255,000 लोग ऐसे हैं जिन्हें देश छोड़ना चाहिए। इनमें से 205,000 को आधिकारिक तौर पर टॉलरेटेड या डुलडुंग माना गया है। यानी ऐसे आप्रवासी जिन्हें देश छोड़ना चाहिए लेकिन जिन्हें डिपोर्ट नहीं किया जा सकता।
दूसरे देशों का सहयोग अहम
आप्रवासन मामलों के जानकार जेराल्ड कनाउस कहते हैं कि सरकारी कदम सैद्धांतिक रूप से सही लगते हैं "लेकिन आप्रवासन समझौते कहीं ज्यादा अहम हैं. उनका इशारा उन देशों के साथ सहयोग की तरफ है जो अपने नागरिकों को वापिस लेने के लिए तैयार हों।" रिफ्यूजियों की बढ़ती संख्या देखते हुए, चांसलर शॉल्त्स ने कहा है कि कई देशों के साथ समझौते किए जाएंगे। उन्होंने कहा, हम उन देशों के साथ करार करेंगे जहां से रिफ्यूजी आ रहे हैं जो यहां नहीं रह सकते। शॉल्त्स ने बताया कि जॉर्जिया, मॉल्दोवा, केन्या, उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान के साथ बातचीत चल रही है।
हालांकि कनाउस कहते हैं कि नाइजीरिया, गांबिया और इराक जैसे कई देश अपने ही नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में डिपोर्टेशन के कड़े नियम बनाना सिर्फ पहला कदम है जो शायद ही कोई डर पैदा कर सकता है।
सरकार को यह अहम बिल अब जर्मनी की संसद, बुंडेसटाग में पास करवाना होगा। मुख्य विपक्षी दल, क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक पार्टी ने बिल को सही दिशा में एक छोटा कदम बताते हुए सहयोग के संकेत दिए हैं। धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) की संसदीय दल की नेता आलिस वाइडेल ने गृह मंत्रालय के बिल को अपनी पार्टी की मांगों की नकल बताया।