अपने दोस्तों से काॅल या चैट पर बातें करना और फोन पर घंटों बिताना हमारी आदत बन गई है। ये आदत मानसिक रूप से कमजोर भी बना सकती है।
मुझे याद है, कॉलेज खत्म होने के बाद मेरी नई जॉब लगी थी पर कोरोना के चलते अधिक समय तक न रह सकी और वापस घर लौटना पड़ा। रानू भी परेशान थी क्योंकि उसने एक कंपनी में इंटरव्यू दिया था तो अभी वहां से भी कोई जवाब नहीं आया था। लॉकडाउन की वजह से न किसी से मिल पा रहे थे न ही घर से बाहर जा सकते थे। बस कॉल ही एक सहारा था इसलिए दोनों ही फोन पर घंटों अपनी बातें करने लगे। बाकी समय फोन पर लगे रहते थे। खाली समय ही नहीं मिलता था जिससे परेशानी भी कम रहती। 20-25 दिन हमारी बहुत बातें हुईं और रानू का अपॉइंटमेंट लेटर आ गया। उसे वर्क फ्रॉम होम मिला। उसकी जॉब लग गई थी तो उसे समय नहीं मिलता जिससे हमारी बात नहीं हो पाती। मेरे पास अब भी बहुत समय था। जो मुझे बोझ लगने लगा था। फोन के चक्कर मैंने खुद के साथ समय गुजारा ही नहीं था जो अब मुझे परेशान कर रहा था। लॉकडाउन के समय की मेरी उस परिस्थिति का सामना अमूमन लोगों को यूं भी करना पड़ सकता है क्योंकि फोन हमारे लिए इतना जरूरी हो गया है कि थोड़े समय भी इससे दूर नहीं रह सकते। बार-बार नोटिफिकेशन चेक करना हो या किसी से घंटों बात, ये हमारी आदत बन जाती है। पर ये आदत समय के साथ आपको मानसिक रूप से परेशान और सामने वाले को असहज कर सकती है इसलिए इससे बचाव बेहद जरूरी है, इस स्थिति में कुछ तरीके अपनाए जा सकते हैं।
क्या हो सकते हैं तरीके
• फोन चलाने के लिए एक निश्चित समय तय करें। यदि आप फोन पर बात करते-करते घंटों गुजार देते हैं तो अलार्म लगा सकते हैं।
• बात यदि अधिक जरूरी नहीं है तो लगभग 15 मिनट का टारगेट रखें। कुछ मिनट ध्यान लगाएं।
• सुबह जागने के बाद और रात को सोने से पहले 1-2 घंटे तक फोन न चलाएं।
• रात को किताब पढ़कर सोने की आदत डालें। पर पेज संख्या जरूर तय करें।