धनतंत्र और जनतंत्र

धनतंत्र और जनतंत्र

धनतंत्र और जनतंत्र

"धनतंत्र और जनतंत्र"

जनतंत्र है-शोर है, चीखो पुकार है, शिकायत है, तकरार है। जनतंत्र है-मारामारी है, आपाधापी है, ताकत का खेल है, रेलमपेल है। जनतंत्र है-शान्ति की पुकार है, बम धमाका है, आतंक है, आदमी के चिथड़े हैं। जनतंत्र है-आत्मघाती है, दूसरों को उड़ाने के लिए अपने को उड़ाता हुआ। लहू है, लाश है, पर्दाफाश है। जनतंत्र है - बेशुमार खबरें हैं, कैमरे हैं, पारदर्शिता है तो भी बहुत कुछ दिखायी नहीं देता न्याय नहीं मिलता। जनतंत्र है, माफिया का कानून कुछ नहीं बिगाड़ पाता। दंगाइयों को नहीं बिगाड़ पाता। ताकतवर का नहीं बिगाड़ पाता। भ्रष्टाचार का नहीं बिगाड़ पाता और ये सब मिलकर उस गरीब उत्पीड़ित जनता पर अपनी समग्र लूट तंत्री लीलाओं का बोझ डालते रहते हैं। कहते रहते हैं कि देखो, दुनिया का आठवाँ आश्चर्य अपना लोकतंत्र। देखो कि मैं बेहद अमीर होता जा रहा हूँ। अमीर होते हुए मैं गरीब की बात कर रहा हूँ। ताकि उसे अपनी अमीरी की तुलना करने का अवसर दे सकूँ। यह मेरी उदारता नहीं तो और क्या है। जनतंत्र है। बहुत है। इतना है कि कोई किसी की सुनता ही नहीं है। कोई कहीं जिम्मेदार नहीं नजर आता, कोई पकड़ में नहीं आता, तब भी अगर चल रहा है, तो ईश्वर का चमत्कार ही कहा जा सकता है। जनतंत्र की प्रशंसा में कम लिखा जा सकता है, जनतंत्र की निन्दा में टनों लिखा जा सकता है। हर परेशान आदमी जनतंत्र पर एक टिप्पणी की तरह है। और परेशान कौन नहीं है। इस तरह एक अरब से ज्यादा शिकायतों की पेटी है जनतंत्र। एक अरब क्रोध, एक अरब लड़ाइयाँ, एक अरब से ज्यादा मारामारियाँ, कलह, हिंसाएँ, सर्वत्र। तो भी इस सबके लिये चल रहा है अपना जनतंत्र; क्योंकि उसमें रहता है धनतंत्र, जो हम सबकी अनन्त कामनाओं का अपना जनतंत्र है।