यूरोपीय संघ अपने शरण कानूनों में बड़े बदलाव करने जा रहा है। शरण का आवेदन करने की बड़ी संख्या और लगातार आते शरणार्थियों के कारण, यूरोप में राजनीतिक उथल पुथल मची है।
जर्मनी में पर्यावरण संबंधी मुद्दों की वकालत करने वाली ग्रीन पार्टी को सबसे ज्यादा माइग्रेशन फ्रेंडली माना जाता है। पार्टी जर्मन सरकार में शामिल है और आप्रवासन पर कड़े प्रतिबंधों का विरोध करती है। हालांकि चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) ने यूरोपीय संघ की नई योजनाओं का विरोध नहीं करने का फैसला किया है। यूरोपीय संघ आप्रवासन से जुड़े कानूनों में बड़े बदलाव करने जा रहा है। माना जा रहा है कि अब आप्रवासियों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे।
सर्वे करने वाली संस्था पोलस्टार ने पिछले हफ्ते आप्रवासन को लेकर जर्मनी में लोगों का मूड जानने की कोशिश की। सर्वे में 1,302 लोग शामिल हुए। इनमें से दो तिहाई ने माना कि आप्रवासन समस्या का यूरोपीय स्तर पर हल खोजना जरूरी है। जर्मन सरकार की इसमें रजामंदी को उन्होंने बढ़िया कदम माना।
सिर्फ एक तिहाई लोगों ने ही रिफ्यूजी समस्या का राष्ट्रीय स्तर पर हल खोजने की वकालत की। इनमें से ज्यादातर धुर दक्षिणपंथी पार्टी, अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) के सदस्य थे। ये लोग चाहते हैं कि जर्मनी विदेशों से आने वाले लोगों की संख्या में भारी कटौती करे।
हालांकि सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों को इस बात पर संदेह है कि इस समस्या का यूरोपीय हल निकाला जा सकता है। 70 फीसदी ने कहा कि यूरोपीय संघ के कानूनों में बदलाव भी भविष्य में कारगर साबित नहीं होंगे।
जर्मनी में इस साल अगस्त के अंत तक 2,20,000 लोग शरण के लिए आवेदन कर चुके हैं। पिछले साल की तुलना में यह 77 फीसदी ज्यादा है। शरणार्थियों को घर और देखभाल मुहैया कराने वाले शहरों और नगर प्रशासनों का कहना है कि अब उनकी क्षमता खत्म हो चुकी है।
इंफ्राटेस्ट के सर्वे में भी 73 फीसदी लोगों ने माना कि जर्मनी में रिफ्यूजियों को सही ढंग से नहीं बसाया गया। 78 फीसदी ने कहा कि रिफ्यूजियों को समाज और श्रम बाजार से जोड़ने का काम ठीक ढंग से नहीं चल रहा है। जबकि 80 प्रतिशत लोगों को लगता है कि प्रशासन शरण का आवेदन खारिज होने के बाद लोगों को वापस भेजने में नाकाम साबित हो रहा है।
शरण के बढ़ते आवेदनों ने जर्मनी की आप्रवासन नीति पर राजनीतिक बहस भी छेड़ दी है। 8 अक्टूबर को बवेरिया और हेसे राज्यों में अहम प्रांतीय चुनाव भी हैं। इस कारण भी राजनीतिक बहस बहुत गर्म हो चुकी है।
डॉयचलांडट्रेंड सर्वे के मुताबिक, सर्वे में शामिल दो तिहाई लोगों ने रिफ्यूजियों की संख्या पर लगाम लगाने का समर्थन किया। जर्मनी में विदेशी आप्रवासियों को लेकर आशंका बढ़ती दिख रही है। एएफडी के साथ ही पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी सीडीयू और उसकी बवेरियाई सहयोगी पार्टी सीएसयू समेत उदारवादी एफडीपी के समर्थक भी आप्रवासन को शंका की नजर से देखने लगे हैं।
यूरोपियन यूनियन में शरण मांगने वालों की संख्या बढ़ी
अर्थशास्त्री कहते हैं कि जर्मनी के श्रम बाजार को हर साल 4,00,000 कुशल कामगारों की जरूरत है। वहीं दूसरी तरफ सर्वे में हिस्सा लेने वाले सिर्फ 27 फीसदी लोगों को लगता है कि आप्रवासन जर्मनी को फायदा पहुंचाएगा।
गैरकानूनी आप्रवासन को कैसे रोका जाए?
यह जर्मनी ही नहीं बल्कि पूरे यूरोपीय संघ के लिए लाख टके का सवाल बन चुका है। सर्वे में हिस्सा लेने वाले 80 फीसदी लोगों ने सीमा पर निगरानी बढ़ाने और अफ्रीकी देशों के साथ लोगों को वापस लेने की संधि करने की वकालत की। इन लोगों को लगता है कि जिनके शरण के आवेदन खारिज हो रहे हैं, उन्हें वापस भेजने के लिए अफ्रीकी देशों के साथ करार किया जाना चाहिए।
जर्मनी के दक्षिण राज्य बवेरिया के मुख्य मंत्री मार्कुस शोएडर, रुढ़िवादी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के नेता है। उन्होंने हाल ही में जर्मनी में रिफ्यूजी की संख्या पर एक सीमा लगाने की मांग की। आलोचकों का कहना है कि ऐसी सीमा अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगी। सर्वे में शामिल 71 फीसदी लोग इस मांग का समर्थन करते हैं। ग्रीन पार्टी को छोड़कर जर्मनी की हर पार्टी के समर्थक इसके पक्ष में हैं।
69 फीसदी लोगों का तर्क है कि अल्जीरिया, मोरक्को और ट्यूनीशिया जैसे देशों को सुरक्षित देश माना जाना चाहिए। इसका मतलब होगा कि इन देशों से आने वाले लोगों के कम आवेदन स्वीकार किए जाएंगे।
सरकार के प्रदर्शन पर मायूसी
चांसलर शॉल्त्स की तीन पार्टियों की सरकार से लोग नाराज हैं। 79 फीसदी लोगों ने सर्वे में कहा कि सरकार अच्छा काम नहीं कर रही है। सिर्फ ग्रीन पार्टी के समर्थक (57 परसेंट) सरकार से खुश दिखे। सरकार में शामिल एसपीडी और एफडीपी के समर्थक अपनी ही सरकार से रूठे हैं।
जर्मनी की सारी पार्टियां मिल कर भी नहीं रोक सकीं एएफडी को
लोगों के इस मूड का असर पार्टियों को रेटिंग पर भी दिख रहा है। सितंबर 2021 के संसदीय चुनावों में 11.5 फीसदी वोट पाने वाली एफडीपी का सपोर्ट 6 परसेंट पर आ चुका है। बीच में हल्की बढ़त हासिल करने वाली ग्रीन पार्टी 2021 की तरह 14 फीसदी पर आ चुकी है। चांसलर शॉल्त्स की पार्टी 16 प्रतिशत पर है।
दूसरी ओर विपक्ष में बैठी सीडीयू-सीएसयू 28 फीसदी के साथ पहले नंबर है। 22 प्रतिशत रेटिंग के साथ धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी दूसरे नंबर पर हैं।
अगर मौजूदा दौर में चुनाव हो जाएं तो जर्मनी की लेफ्ट पार्टी तो संसद में दाखिल भी नहीं हो सकेगी। पार्टी का जनाधार अभी 4 परसेंट के आस पास दिखता है।