जर्मनी के मध्य दक्षिणपंथी पार्टी सीडीयू और सीएसयू ने दो राज्यों के चुनाव में जीत हासिल की है। चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की पार्टी और केंद्र में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पार्टियों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है।
जर्मनी की गठबंधन सरकार के दो साल के कामकाज के बाद घरेलू मोर्चे पर टेस्ट माने जा रहे इन प्रांतीय चुनावों में चांसलर शॉल्त्स को करारा झटका लगा हैं।
शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) के साथ ही गठबंधन में शामिल ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी) के वोटों का हिस्सा घटा है। हेस्से प्रांत में तो एसपीडी ने अब तक का सबसे बुरा प्रदर्शन किया है।
इस बीच धुर दक्षिपंथी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) को बढ़त हासिल हुई है और वो दोनों प्रांतों में दूसरे नंबर पर आ गई है। हेस्से, जहां कारोबारी राजधानी कहे जाने वाले फ्रैंकफर्ट का प्रांत है वहीं बवेरिया बीएमडब्ल्यू और सीमेंस जैसी बड़ी कंपनियों का घर। ये दोनों जर्मनी के सबसे अमीर राज्यों में शामिल हैं। इन दो बड़े राज्यों के चुनाव में जर्मनी के करीब एक चौथाई मतदाता रहते हैं।
सीडीयू-सीएसयू जीती
बवेरिया में क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) को 37 प्रतिशत वोट मिले हैं जो पिछले चुनावों की तुलना में करीब 0.2 फीसदी कम है। 1950 के बाद यह सीएसयू का सबसे खराब प्रदर्शन है। राज्य के मुख्यमंत्री मार्कुस जोयडर एक बार फिर इस पद पर आसीन होंगे। राज्य की सत्ताधारी गठबंधन में शामिल फ्री वोटर्स ने 2018 की तुलना में 4 फीसदी से ज्यादा का सुधार करते हुए इस बार 15.9 फीसदी वोट हासिल किए हैं। पिछली बार उसे 11.6 फीसदी वोट मिले थे।
ग्रीन पार्टी बवेरिया में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी थी। पिछले बार की तुलना में उसे 3.2 फीसदी कम मत मिले हैं। उसका हिस्सा 14.4 फीसदी रहा। उधर धुर दक्षिणपंथी एएफडी 10.2 फीसदी से आगे बढ़ कर 14.8 फीसदी पर पहुंच गई है। शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी जहां एक बार फिर दहाई के आंकड़े को भी नहीं छू सकी और 8.3 फीसदी पर सिमट गई वहीं कारोबार समर्थक एफडीपी पार्टी तो एसेंबली में प्रवेश के लिए जरूरी 5 फीसदी के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच सकी। उसे सिर्फ 3 फीसदी वोट मिले हैं जो पिछली बार की तुलना में 2.1 फीसदी कम है।
एएफडी दूसरे नंबर पर
हेस्से में मुख्यमंत्री बोरिस राइन के नेतृत्व में क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) ने अच्छी बढ़त हासिल की है और उसे 34.6 फीसदी वोट मिले हैं। 2018 में उसे 27 फीसदी वोट मिले थे। ग्रीन पार्टी को यहां भी नुकसान हुआ है औऱ वह पिछले चुनावों के 19.8 फीसदी से फिसल कर 14.8 फीसदी पर आ गई है। एसपीडी को पिछले चुनाव में ही बहुत नुकसान हुआ था लेकिन इस बार वह और नीचे गिर कर 15.1 फीसदी पर चली गई है। ये हालात तब हैं जबकि हेस्से कभी एसपीडी का गढ़ हुआ करता था।
एएफडी को यहां भी फायदा हुआ है और पिछले चुनावों के 13.1 फीसदी की तुलना में इस बार उसे 18.4 फीसदी वोट मिला है। आंतरिक झगड़ों का सामना कर रही लेफ्ट पार्टी एसेंबली में घुसने लायक वोट हासिल करने में भी नाकाम रही है जबकि एफडीपी एसेंबली में पहुंचने के लिए जरूरी 5 फीसदी वोट हासिल कर लिया है।
सत्ताधारी गठबंधन का सरदर्द बढ़ा
इन राज्यों के चुनाव ने केंद्रीय सत्ताधारी गठबंधन की चिंता बढ़ा दी है। 2021 में राष्ट्रीय संसद के लिए हुए चुनाव में एसपीडी, ग्रीन और एफडीपी पार्टियां 52 फीसदी वोट हासिल करने में सफल हुई थीं। इन दोनों राज्यों के चुनाव के हिसाब से पूरे देश का आकलन किया जाए तो अब उनके वोटों का आंकड़ा घट कर 38 फीसदी पर आ गया है। खासतौर से एसपीडी को तगड़ा नुकसान हुआ है।
बवेरिया में एएफडी तीसरे नंबर पर तो हेस्से में दूसरे नंबर पर रही है जो पार्टी के लिए पूरे देश में बढ़ते समर्थन का संकेत है। अब उनकी लोकप्रियता केवल पूर्वी जर्मनी तक ही सीमित नहीं रह गई है। बाकी सभी पार्टियों ने एएफडी को सरकार से दूर रखने की कसम खाई है लेकिन जिस तरह से एएफडी का दायरा बढ़ रहा है उससे और ज्यादा चौंकाऊ नतीजों के आसार बनने लगे हैं।