भारत और जर्मनी के बीच समय का अंतर गर्मियों में साढ़े तीन घंटे का होता है लेकिन सर्दियों में यही अंतर साढ़े चार घंटे का होता है। जाहिर है यह समय अपने आप तो नहीं बदलता बल्कि इसे बदला जाता है।
डेलाइट सेविंग टाइम (डीएसटी)
इसमें डेलाइट सेविंग टाइम पद्धति का इस्तेमाल होता है। इसके तहत गर्मी के दिनों में मानक समय को एक घंटे आगे बढ़ाया जाता है और वहीं सर्दियों के दिनों में घड़ी को एक घंटे पीछे कर दिया है कि दिन की रोशनी का अच्छा इस्तेमाल हो सके।
आगे-पीछे होती घड़ी
लोगों को अपनी घड़ियां सही सेट करना याद रहे, उसके लिए एक कहावत भी है "स्प्रिंग फॉरवर्ड, फॉल बैक," मतलब वसंत आते ही डीएसटी (डेलाइट सेविंग टाइम) की शुरुआत में घड़ी को 1 घंटा आगे कर दीजिए और इस घंटे की भरपाई डीएसटी की समाप्ति के बाद पतझड़ में कर लीजिए।
उत्तरी गोलार्द्ध
उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित, उत्तरी अमेरिका, मध्य अमेरिका, यूरोप और उत्तरी अफ्रीका में गर्मियों के दिनों में डीएसटी को लागू किया जाता है। डेलाइट सेविंग टाइम यहां आमतौर पर मार्च-अप्रैल में शुरू होती है और सितंबर से नवंबर के बीच, देश अपने मानक समय को वापस अपना लेता है।
दक्षिणी गोलार्द्ध
ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिणी अमेरिका के अधिकतर हिस्से समेत दक्षिणी अफ्रीका के कई देशों में डीएसटी को सितंबर-नवंबर के मध्य शुरू किया जाता है और मार्च-अप्रैल तक आते- आते यहां भी डीएसटी को समाप्त कर मानक समय अपना लिया जाता है।
सौ साल से भी ज्यादा
जब जर्मनी ने पहली बार 30 अप्रैल, 1916 को डीएसटी पर स्विच किया तो यह राष्ट्रीय स्तर पर डीएसटी का उपयोग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। हालांकि, कनाडा के थंडर बे शहर में साल 1908 में डीएसटी लागू हुआ था।
ऐसे मिले सुझाव
अमेरिकी आविष्कारक और राजनेता बेंजामिन फ्रैंकलिन ने सबसे पहले 1784 में डीएसटी की अवधारणा पेश की थी, लेकिन आधुनिक डेलाइट सेविंग टाइम का पहला सुझाव 1895 में आया था। उस समय, न्यूजीलैंड के एक कीटविज्ञानी जॉर्ज वर्नन हडसन ने 2 घंटे की डेलाइट सेविंग के लिए एक प्रस्ताव दिया था।
क्यों करें प्रयोग
दुनिया के 40 प्रतिशत से कम देशों में डीएसटी का इस्तेमाल होता है। कुछ देश शाम में प्राकृतिक रोशनी के बेहतर इस्तेमाल के लिए इसका उपयोग करते हैं। पृथ्वी के भूमध्य रेखा से एक निश्चित दूरी पर क्षेत्रों में रोशनी का यह अंतर सबसे अधिक नजर आता है।
कितना कारगर
कुछ शोध बताते हैं कि डीएसटी के चलते सड़क दुर्घटनाएं बढ़ी हैं क्योंकि दिन में ज्यादा रोशनी के चलते अधिक लोग सड़कों पर होते हैं जिससे दुर्घटना की आशंका बढ़ती है। कुछ अध्ययनों का दावा है कि डीएसटी परिवर्तन से लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
ऊर्जा मांग की कमी
डीएसटी का उपयोग शाम के समय कृत्रिम प्रकाश के लिए ऊर्जा की मांग को कम करता है। हालांकि, कई अध्ययन डीएसटी की ऊर्जा बचत से असहमत है, और कुछ अध्ययन सकारात्मक परिणाम दिखाते है।
जरूरी नहीं 1 घंटा
आजकल, पड़ियां महज एक घंटे बढ़ायी जा रही है लेकिन हर देश अपनी जरूरत के हिसाब से इसे आगे-पीछे करते हैं। ऑस्ट्रेलिया के कुछ द्वीपों में समय महज 30 मिनट आगे-पीछे किया जाता है। पहले कुछ जगह यह अंतर 45 मिनट से 2 घंटे तक का रहा है।